सन्तोषम् परम् सुखम्

"सन्तोषम् परम् सुखम्"



"संतोष"- एक ऐसा शब्द जो लगभग हर व्यक्ति इसका उपयोग करता है और लगभग प्रत्येक व्यक्ति इसकी तलाश करता है। यह बहुत महत्वपूर्ण शब्द है वर्तमान समय का। कभी सलाह के रूप में तो कभी आत्मानुभूति के रूप में इस शब्द का सामना करना पड़ता है फिर भी इसकी खोज जारी रहती है। "आपको तो संतोष ही नही है", "संतोष रखो! जो होगा सब ठीक होगा", आह! आज जाकर मुझे संतोष मिला है", "सिर्फ संतोष मिल जाये, अब और कोई इच्छा नहीं" आदि वाक्य अब रोज किसी न किसी से सुनने को मिलते हैं। एक पुराना वाक्य "सन्तोषम् परम् सुखम्" अक्सर सुनने को मिलता है, महसूस करने को मिलता है, आत्मसात करने को मिलता है। अच्छा भी लगता है। क्या संतोष प्राप्ति ही परमसुख है? बिल्कुल है क्योंकि जब हम किसी उद्देश्य विशेष को प्राप्त कर लेते हैं तो उस क्षण जो आनंद प्राप्त होता है वह किसी परमसुख से कम नहीं होता है। लेकिन आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि इस शब्द का प्रयोग केवल सकारात्मक दृष्टि से ही नहीं बल्कि नकारात्मक दृष्टि से भी हो रहा है। आप में से अनेक लोग ऐसे विशेष दृश्य से परिचित हुए होंगे जिसमें व्यक्ति किसी का अहित कर संतुष्टि का अनुभव करता है। मैने स्वयं अनेको बार साक्षात देखा है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य सकारात्मक कार्य करने वाले का अहित करता है और कहता है "आज मुझे बहुत संतोष प्राप्त हुआ है।" क्या किसी अच्छे कार्य या व्यक्ति का अहित कर कोई संतुष्ट हो सकता है? लेकिन होता यही है कि उसे इसमें अनंत खुशी प्राप्त होती है। इससे उन्हें भरपूर संतोष और आनंद प्राप्त होता है।  

देखा  जाए तो "संतोष" का अर्थ "मानसिक संतुष्टि" से है। 'संतोष' का वर्तमान स्वरूप कुछ इस प्रकार हो चुका है कि मानव के मन-मस्तिष्क में जो भी लक्ष्य हो उसे प्राप्त कर वह संतुष्टि प्राप्त करता है। यहां ध्यान देने योग्य विशेष विषय यह है कि यदि उस लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग सकारात्मक है तो ठीक है अन्यथा यदि उस लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग नकारात्मक है या वह लक्ष्य नकारात्मक है तो ऐसे समय में महसूस होगा कि अमुक द्वारा प्राप्त किये संतोष में नकारात्मक भाव भी प्रकाशित हो रहा है। वास्तव में यह संतोष नहीं है बल्कि उनकी कुत्सित मानसिकता या नकारात्मक मानसिकता है। ऐसे कुप्रवृत्ति वाले कृत्य को सकारात्मक नाम देकर कार्य को सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। दुखद है कि आजकल लोगों ने इस वाक्य के अर्थ को ही बदल कर रख दिया है। ख़ैर समझदार को इशारा काफी होता है। अतः अच्छे कार्य में सहयोग करें उसके पश्चात संतोष प्राप्त करें तो परमसुख की अनुभूति अवश्य प्राप्त होगी।

सर्वजन को प्रयासरत रहना चाहिए कि उनके द्वारा किया जाने वाले कृत्य में सकारात्मकता का इतना अधिक समावेश करें कि नकारात्मकता को सकारात्मक प्रवृत्ति से पूर्णतः समाप्त किया जा सके। फिर प्राप्त होगा वास्तविक संतोष। आज कम शब्दों के लेखक को भी इसे लिखने में संतोष प्राप्त हुआ। 

आशा है आपको भी पढ़ने में संतोष प्राप्त हुआ होगा।

--- आपका कम शब्दों का लेखक  (प्रमोद केसरवानी)


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