विश्राम को न दें विराम
वर्तमान समय में एक अत्यंत महत्वपूर्ण शब्द जिसे लोग अब स्मरण में नहीं रखते जबकि इस शब्द मात्र का स्मरण क्षणिक स्फूर्ति प्रदान तो कर ही देता है। सोचिए इस शब्द को ओढ़ लिया जाए तो कितनी चैतन्यता प्रदान करेगा। यह अत्यंत महत्वपूर्ण शब्द है- विश्राम।
विश्राम कौन नहीं चाहता। हम-आप, आप-सब, फिर भी सबने आज के भाग-दौड़ वाले वातावरण में इससे दूर होकर अपने जीवन को त्वरित वेग वाला यंत्र बना कर रख दिया है। यह शरीर रूपी यंत्र चलता तो बहुत तीव्र गति से है लेकिन यदि इसके औजारों और पुर्जों को आवश्यकतानुसार नियमित ईंधन नहीं दिया जाएगा तो जल्द ही इस शरीर रूपी यंत्र पर से आपका नियंत्रण खो जाएगा जो पुनः या तो वापस आसानी से नहीं प्राप्त होगा या वो गति हमेशा के लिए खो देंगे।
इस उदाहरण के सार्थक अर्थ को समझते हुए हमें विश्राम के महत्व को समझना अतिआवश्यक है।
हमारे शरीर द्वारा कार्य करने के दौरान गंवाई गयी ऊर्जा को पुनः को प्राप्त करने के लिए आवश्यकता होती है विश्राम की। वास्तव में चाहे वह श्वास लेना हो या सोचना या चलना-फिरना, बोलना, देखना या शारीरिक श्रम जैसे दौड़ना-भागना, सामान उठाना या पढ़ना आदि हो। इन सभी क्रियाओं में ऊर्जा की भरपूर आवश्यकता होती है। जब हम कोई कार्य करते हैं तो शरीर के ऊतकों द्वारा ऊर्जा के लिए शर्करा और ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जिससे शर्करा और ऑक्सीजन का क्षय होता है जिसके लिए अधिक रक्तसंचार और अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए हमारी हृदयगति और श्वास-प्रश्वास क्रिया बढ़ जाती है और इससे शरीर का ताप बढ़ जाता है तथा लैक्टिक एसिड और कार्बन डाईऑक्साइड निरंतर गुर्दा तत्पश्चात श्वास द्वारा बाहर निकाला जाता है। ऐसे में मांसपेशियों में संकुचन होने पर थकान का अनुभव होता है। इससे मुक्त होने के लिए सबसे अधिक आवश्यक है वापस भरपूर ऑक्सीजन का प्राप्त होना। अर्थात ऊर्जा का क्षय यानी शरीर व मन की थकान। यह थकान मानसिक व शारीरिक दोनों होती हैं।
शारीरिक विश्राम के लिए अनेक उपाय हैं जिनका अभ्यास कर आप तुरंत ऊर्जान्वित हो सकते हैं। हमें किसी स्थान पर खड़े होकर या बैठकर अंगड़ाई लेने से तुरंत स्फूर्ति मिलती है। हाथों को बाहर निकाल कर कमर के ऊपरी हिस्से को पहले बाएं फिर दाएं चार-पांच बार घुमाइए, तत्पश्चात दोनों हाथों को ऊपर उठाकर एक दूसरे से बांध लें फिर पैर के पंजों पर उठते हुए ऊपर की ओर खींचें फिर सामान्य अवस्था में आ जाएं। दो-तीन बार यह क्रिया आपको ऊर्जान्वित करेगी। यदि संभव हो तो पालथी मारकर बैठ जाइये और मंद-मंद मुस्कुराहट अपने चेहरे पर रखें। आप चाहें तो पद्मासन भी लगा सकते हैं।
मानसिक विश्राम के लिए योग का सहारा लेना सर्वोत्तम है। यदि यह संभव न हो तो किसी शांत स्थान पर बैठकर आंख बंद करके गहरी श्वास-प्रश्वास क्रिया करते हुए सामान्य श्वास-प्रश्वास पर आ जाएं। अपना मन उसी श्वास वेग पर लगाएं या जो भी आपके ईष्ट-प्रभु हों उनपर मन एकाग्र करें या कोई खुशनुमा पल जो बीत गया हो उस पर मन एकाग्र करें। कुछ देर में आपको हल्का महसूस होगा और आपके अंदर पुनः स्फूर्ति और प्रफुल्लता का संचार होगा। यदि आप किसी ऐसी जगह पर हैं जहां शांत माहौल भी नहीं हो तो आप सिर्फ कहीं भी आराम से बैठकर श्वास को नाक से अंदर खींचें और मुह से बाहर निकाल दें। यह क्रिया अपने समयानुसार निश्चित करके करें। आप चाहें तो खड़े होकर भी यह क्रिया कर सकते हैं। आपको मानसिक स्तर पर मजबूत कर स्फूर्ति से भर देगी ये क्रियाएं।
अक्सर हम सभी ने महसूस किया होगा कि जब हम निद्रा में होते है तो यदि अचानक कोई विघ्न पड़ जाता है तो शरीर में स्फूर्ति व प्रफुल्लता के अहसास की जगह आलस्य या शक्तिहीनता का आभास होता है और अचानक ऐसा महसूस होगा कि सोचना-समझना रुक-सा गया हो, पुनः सामान्य अवस्था प्राप्त करने में समय लगता है, यही होती है मानसिक अव्यवस्था की स्थिति।
वैसे एक महत्वपूर्ण सूत्र जरूर स्मरण में रखियेगा-सकारात्मक सोच व हंसी-खुशी के साथ कार्य करते हुए हर पल, हर दिन बिताइए व सर्वोपयोगी उचित नींद (यानी न आवश्यकता से और न तो आवश्यकता से कम) लीजिये- यही सबसे बड़ा विश्राम होगा।
विश्राम का अर्थ कभी-भी आलस्य से नहीं जोड़ना चाहिए। दोनों बिल्कुल अलग हैं। आलस्य पर चर्चा आगे फिर कभी अवश्य करेंगे।
-आपका कम शब्दों का लेखक
प्रमोद केसरवानी

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