क्षुधा तृप्ति, जीवन प्राप्ति
"क्षुधा तृप्ति, जीवन प्राप्ति" 'भूख' किसे नहीं लगती, जब भूख लगती है तो कुछ खा लेते हैं फिर क्षुधा तृप्त यानी भूख शांत। लेकिन सोचिए, अगर भूख लगे और कुछ खाने को न मिले तब??? सोचिए आपके पास रुपये-पैसे न हों और भूख से पेट में मरोड़ उत्पन्न हो रही हो, तो??? आपको खूब भूख लगी हो और अचानक कुछ कहने योग्य चीजें सामने आ जाये लेकिन आपको मिले नहीं, तब??? आप तो कुछ समय बाद किसी तरह कुछ व्यवस्था करके या गंतव्य तक पहुंचकर अपनी क्षुधा तृप्त कर लेंगे लेकिन ऐसे समय में हमें उनके बारे में अवश्य सोचना चाहिए जिनके पास कुछ भी व्यवस्था नहीं है, गरीब हैं, असहाय हैं; वे बच्चे जो भूख से रोते-बिलखते सो जाते हैं और धीरे-धीरे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं, बीमार हो जाते हैं और दम तोड़ देते हैं। उनके लिए यदि हम सेवा रूप में कुछ कर सकते हैं वो वह सेवा है- उनकी 'भूख' को शांत करने की सेवा। भूख को परिभाषित करता एक विशेष वाक्य 'भैया जी का दाल-भात' के संकल्प पत्र में पढ़ने का अवसर मिला। ये वाक्य आप भी पढ़ें- " बुभुक्षित: किं न करोति पापम् " अर्थात "भूखा प्राणी कौन-सा प...