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Showing posts from January, 2019

क्षुधा तृप्ति, जीवन प्राप्ति

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"क्षुधा तृप्ति, जीवन प्राप्ति" 'भूख' किसे नहीं लगती, जब भूख लगती है तो कुछ खा लेते हैं फिर क्षुधा तृप्त यानी भूख शांत। लेकिन सोचिए, अगर भूख लगे और कुछ खाने को न मिले तब??? सोचिए आपके पास रुपये-पैसे न हों और भूख से पेट में मरोड़ उत्पन्न हो रही हो, तो??? आपको खूब भूख लगी हो और अचानक कुछ कहने योग्य चीजें सामने आ जाये लेकिन आपको मिले नहीं, तब??? आप तो कुछ समय बाद किसी तरह कुछ व्यवस्था करके या गंतव्य तक पहुंचकर अपनी क्षुधा तृप्त कर लेंगे लेकिन ऐसे समय में हमें उनके बारे में अवश्य सोचना चाहिए जिनके पास कुछ भी व्यवस्था नहीं है, गरीब हैं, असहाय हैं; वे बच्चे जो भूख से रोते-बिलखते सो जाते हैं और धीरे-धीरे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं, बीमार हो जाते हैं और दम तोड़ देते हैं। उनके लिए यदि हम सेवा रूप में कुछ कर सकते हैं वो वह सेवा है- उनकी 'भूख' को शांत करने की सेवा। भूख को परिभाषित करता एक विशेष वाक्य 'भैया जी का दाल-भात' के संकल्प पत्र में पढ़ने का अवसर मिला। ये वाक्य आप भी पढ़ें- " बुभुक्षित: किं न करोति पापम् " अर्थात "भूखा प्राणी कौन-सा प...

सत्-संग रहें, सत्संग करें

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सत्-संग रहें, सत्संग करें आज मैं एक पुस्तक पढ़ रहा था जिसमें सत्संग के महात्म्य का वर्णन था। पढ़ते-पढ़ते कब पूरा पढ़ गया पता ही नहीं चला और कुछ जरूरी काम मेरी माँ ने मुझे करने के लिए कहा था वह भूल गया। मैने माँ से क्षमा मांग ली और उन्हें बताया कि कुछ बहुत आवश्यक पढ़ रहा था। चलिए आप सब से भी साझा करता हूँ क्योंकि यह बहुत आवश्यक विषय है वर्तमान के समय के लिए- सर्वप्रथम गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखा यह पद्य सत्संग विषय पर अपनी विशेष दृष्टि रखती है- बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग। मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग।। अर्थात "बिना सत्संग के हरि-कथा नहीं मिलती और हरि-कथा के बिना मोह का नाश नहीं होता तथा मोह के नाश के बिना राम पद अर्थात ईश्वर से आपका अनुराग अर्थात प्रेम संभव नहीं है।" रामचरितमानस के बालकाण्ड में श्री शिवजी के वचन हैं-  हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होंहि मैं जाना। अर्थात "हरि अर्थात ईश्वर, सर्वत्र अर्थात सभी स्थान पर समान रूप से उपस्थित हैं लेकिन प्रगट होंगे, प्रेम यानी उनके प्रति अनुराग उत्पन्न करने से" और अ...