सत्-संग रहें, सत्संग करें

सत्-संग रहें, सत्संग करें

आज मैं एक पुस्तक पढ़ रहा था जिसमें सत्संग के महात्म्य का वर्णन था। पढ़ते-पढ़ते कब पूरा पढ़ गया पता ही नहीं चला और कुछ जरूरी काम मेरी माँ ने मुझे करने के लिए कहा था वह भूल गया। मैने माँ से क्षमा मांग ली और उन्हें बताया कि कुछ बहुत आवश्यक पढ़ रहा था। चलिए आप सब से भी साझा करता हूँ क्योंकि यह बहुत आवश्यक विषय है वर्तमान के समय के लिए-
सर्वप्रथम गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखा यह पद्य सत्संग विषय पर अपनी विशेष दृष्टि रखती है-
बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग।
मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग।।
अर्थात "बिना सत्संग के हरि-कथा नहीं मिलती और हरि-कथा के बिना मोह का नाश नहीं होता तथा मोह के नाश के बिना राम पद अर्थात ईश्वर से आपका अनुराग अर्थात प्रेम संभव नहीं है।"

रामचरितमानस के बालकाण्ड में श्री शिवजी के वचन हैं- 
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना।
प्रेम तें प्रगट होंहि मैं जाना।
अर्थात "हरि अर्थात ईश्वर, सर्वत्र अर्थात सभी स्थान पर समान रूप से उपस्थित हैं लेकिन प्रगट होंगे, प्रेम यानी उनके प्रति अनुराग उत्पन्न करने से" और अनुराग प्राप्त होता है सत्संग से।

जयदयाल गोयनका जी लिखते हैं- 
सत्संग चार प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार का सत्संग है- परमात्मा में प्रेम यानी परमात्मा में अनुराग उत्पन्न करना। परमात्मा का दर्शन कर भक्त का उनके साथ रहना। यह सर्वोत्तम सत्संग का स्वरूप है। श्रीतुलसीदास जी ने इस सत्संग का बहुत ही विशेष महत्व बताया है। उन्होंने कहा है- 
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिली जो सुख लव सत्संग।।
अर्थात "हे तात! यदि तुला के एक पलड़े पर स्वर्ग व मुक्ति के सुख को रख दें और दूसरे पलड़े पर विद्यमान सत्संग हो तो जो सुख सत्संग में प्राप्त होगा उसके आगे स्वर्ग सुख क्या चीज है।"
दूसरे प्रकार का सत्संग है- भगवान के प्रेमी भक्त का या सत्-रूप परमात्मा को प्राप्त जीवन्मुक्त पुरुष का संग। अर्थात वह पुरुष जो ईश्वरतुल्य हों उनका संग। 
तीसरा सत्संग है- उन सभी उच्चकोटि के साधक पुरुषों का संग, जो ईश्वर प्राप्ति या परमात्मा प्राप्ति के लिए अनवरत प्रयत्नशील हैं। 
चौथा और अंतिम सत्संग है- उन सभी सत्-शास्त्रों का स्वाध्याय जिसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और सदाचार का वर्णन हो। इस प्रकार के सत्-शास्त्रों का सदा श्रद्धा व आदरपूर्वक पठन-मनन और अनुशीलन करने से सत्संग के समान ही लाभ प्राप्त होता है।

अब आज के परिप्रेक्ष्य में यह समझने का प्रयास करते हैं कि वर्तमान में सत्संग का स्वरूप भी बिल्कुल बदल-सा गया है। अक्सर लोग यह कहते-सुनाते मिल जाते हैं कि हम तो फलां जगह सत्संग में गए थे, हम फलां गुरुजी के सत्संग में होकर आए हैं। लेकिन उनके आचरण में, बोली-भाषा में एक प्रतिशत भी परिवर्तन देखने को नहीं मिलता। वो वैसे ही पहले की भांति अपशब्द बोलते मिलेंगे, आलोचना करते मिलेंगे, इधर की बात उधर करते मिलेंगे- 'मेरे गुरुजी तो ऐसे भजन किये कि लोग झूम गए', 'मेरे गुरु जी तो ख़ूब नाचे', आदि-आदि। कुछ तो इतना अधिक दिखावा कर जाते हैं कि लगता है कि साक्षात भगवान ही प्रकट हो जाएंगे। कुछ तो यह भी कहते मिल जाते हैं कि हमारा मंदिर तो वही है, वही दर्शन करता हूँ। इस मंदिर में मैं नही जाता। ये मेरा नहीं है। आश्चर्य होता है कि भगवान भी अलग-अलग होने लगे और कहते फिरते हैं कि हम हर सत्संग में जाते हैं। वास्तव में विकारों से ग्रसित मानव को सिर्फ नाच-गाना ही सत्संग जान पड़ता है बाकी की चीजें उसे उबाऊ लगेंगी। जहां नाच-गाना होगा वहां दौड़कर जाएगा लेकिन जहां शास्त्र ज्ञान लाभ, जीवनोपयोगी सूत्र को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा वहां नहीं जाएगा।
गुरुजी के माध्यम से कई बार श्रवण किया था कि लोग सत्संग में तो अधिकतर जाते हैं लेकिन उसके मर्म को बिना समझे, नाच-गा कर वापस आ जाते हैं और समझते हैं कि हम तो सत्संग कर आये।
कुछ लोगों से ऐसे ही कभी-कभी चर्चा होती है तो पता चलता है कि सत्य है कि सत्संग की वास्तविकता को समझे बिना ही सत्संग किये जा रहे हैं।
जयदयाल गोयनका जी द्वारा वर्णित सत्संग का महात्म्य समझ पालन करें तो तन-मन-विचार शुद्ध होकर वास्तविक सत्संग का लाभ ले सकेंगे। मेरे विचार से यदि प्रथम तीन प्रकार के सत्संग का तत्व न मिल पाए तो चौथे प्रकार से प्रथम तीन को प्राप्त किया जा सकता है।
तो अब से जब भी सत्संग करेंगे, सार्थक रूप में करेंगे। विकारों को दूर करेंगे। जो सीखेंगे, सकारात्मक सीखेंगे, उसे अपने व्यवहार में उतारेंगे, अच्छा बोलेंगे, अच्छा करेंगे, ज्ञानार्जन कर बांट देंगे। 'तेरा तुझको अर्पण' का भाव रखेंगे। आडंबर-भव्यता से बचें, दिव्यता को प्राप्त करें।
"ईश्वर सबके हैं, आप ईश्वर के हैं,
 उनके लिए सत्कार्य करें।
उनके कार्य कर सत्मार्ग चलें,
सत्-संग रहें, सत्संग करें।।"
तब सब अच्छा होगा।
वैसे आज हमने भी इस सुअवसर का लाभ लेते हुए आपसे सत्संग करने का प्रयास किया। ईश्वर आपके वास्तविक सत्संग का मार्ग प्रसस्त करें...
-आपका कम शब्दों का लेखक
(प्रमोद केसरवानी)

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