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Showing posts from October, 2018

मुफ्त की सलाह : प्रकृति, संस्कृति या विकृति

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मुफ्त की सलाह : प्रकृति, संस्कृति या विकृति    पिछले कुछ महीने से प्रतिदिन देख रहा हूँ और विश्लेषण कर रहा हूँ कि मुफ्त की सलाह बहुत मिले परंतु कुछ प्राकृतिक लगा, कुछ संस्कारों से परिपूर्ण मिला और आश्चर्य तो तब अधिक हुआ जब  कुछ विकृतियों से भी ओतप्रोत मिला। खैर विकृति, प्रकृति और संस्कृति ये तीनो शब्द कहीं पढ़ने को मिला तो मुफ्त की सलाह को इन तीन शब्दों के साथ जोड़ा तो समझा कि इन्हीं तीन बिंदुओं के आसपास प्रत्येक चीज होती है।    सर्वप्रथम बात, मुफ्त के सलाह को प्रकृति रूप में देखने की। अक्सर आप में से अनेक लोगों को मुफ्त में सलाह मिला होगा। कभी तो सलाह बहुत अच्छी लगती है, तो हम खुश होकर उस विषय पर गंभीर चिंतन करने लगते हैं। लगता है बस इसी से जीवन संवर जाएगा। उसी ओर सोचते हुए हम उसकी ओर आगे बढ़ने लगते हैं। लेकिन अगले कुछ पल या दिनों या महीनों बाद फिर कोई आपका सगा आपको फिर कोई सलाह दे जाता है जिससे आपका मन पुनः विचलित हो जाता है और आप पुनः इस नई दिशा में सोचने लग जाते हैं। यहीं आपको संभलने की जरूरत है क्योंकि जैसा कि आपको पिछले लेख में एक सूत्र प्राप्त ...

मन का विचलित होना स्वाभाविक है

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मन का विचलित होना स्वाभाविक है   दुःख आएगा, यह तो तय है। यह भी सभी जानते हैं कि सौ प्रतिशत सुख नहीं हो सकता है क्योंकि हम कर्म बंधन से बंधे हैं। प्रतिक्षण ऐसा कृत्य हो जाता है जिसका सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम प्राप्त होता है लेकिन हम मनुष्य हैं तो स्वाभाविक है कि जो चीज मन के अनुकूल हुई उसको ज्यादा अहमियत देते हैं चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक। यह हमारे मन पर निर्भर करता है। (पिछले लेख में आपको सकारत्मक होने का एक सूत्र प्राप्त हुआ था)। कई कृत्य ऐसे भी होते हैं जिसका दूरगामी परिणाम मिलता है और हम सुख या दुख की अनुभूति करते हैं। यदि सुख की अनुभूति हुई तो खुशी और यदि दुख की अनुभूति हुई तो दुःखी। लेकिन यहां पर ही समझने वाला और संभलने वाला महत्वपूर्ण पड़ाव होता है। जिस मनुष्य में दुःख को सुखपूर्वक व्यतीत करने का रहस्य पता है (पिछले लेख में यही चर्चा हुई थी) वह तो संभल जाएगा और यहां दुख की अनुभूति के बजाय यह सोचकर संतुलित हो जाएगा कि "कहीं न कहीं उस कृत्य में कुछ कमी रह गई होगी जिसका यह परिणाम प्राप्त हुआ।" लेकिन वहीं अन्य लोग दुःख में ग़मगीन हो जाएंगे या दुःख क...

ग़म जैसी कोई चीज नहीं...

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ग़म जैसी कोई चीज नहीं… खुश होना तो सभी चाहते हैं, लेकिन ग़म साथ छोड़ता ही नहीं है| क्यों? क्योंकि हम उसे ग़म समझते हैं| वास्तव में ये परिस्थितियां हैं जो कि हमें ख़ुशी और ग़म देते हैं| यदि हमारे मन के अनुकूल कोई घटना घटती है तो हम उसे ख़ुशी समझते हैं लेकिन जब हमारे मन के विपरीत कोई परिस्थिति बनी तो उसे हमने समझ लिया ग़म| इस संसार में कोई १०० प्रतिशत खुश या कोई भी १०० प्रतिशत ग़म में नहीं हो सकता है इसलिए कोशिश यह क्यों न किया जाये कि हम परिस्थितियों के अनुकूल होने के बजाय परिस्थितियों को ही अपने अनुकूल कर लें| यह भी हो सकता है कि अब अगर परिस्थितियों को अपने अनुकूल न कर पाए तो भी कोई चिंता की बात नहीं है क्योंकि उससे तब हम किसी और तरीके से मुकाबला कर पाएंगे | वह माध्यम है उसे भी "हम ख़ुशी ख़ुशी अपनाकर बिता दें" क्योंकि जो है तो वो है ही है उसे कोई बदल नहीं सकता| उसे बिताना या उसका मुकाबला करना जरुरी है | उसे बिताना कैसे है ? यह बहुत महत्वपूर्ण है |  अतः उसे हम ख़ुशी ख़ुशी बिता लें तो जिंदगी की राह आसान हो जाती है | साथ में हर पल- प्रति क्षण उस ईश्वर को या अपने माता-पिता का स...

शिक्षा में मजाक या मजाक में शिक्षा...

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शिक्षा में मजाक या मजाक में शिक्षा… शीर्षक को पढ़कर सोच रहे होंगे कि ये क्या लिख दिया? लेकिन ये सच है कि आज गांव के विद्यालयों में यही दो चीजें हो रही हैं। शिक्षा में मजाक और मजाक में शिक्षा चल रही है। शहरों के विद्यालयों की स्थिति के बारे में नही कह रहा हूँ क्योंकि वहां के परिवेश के मुझे अनुभव नही है। या ये भी हो सकता है कि जिन विद्यालयों के बारे में जनता हूँ, वहां का परिवेश देखकर मैं ऐसा कह रहा हूँ। बाकी पर मेरा कोई कटाक्ष नही है। खैर, बच्चे क्या पढ़ रहे हैं, कैसे पढ़ रहे हैं लगता है कि केवल प्रबंधक जी को ही चिंता है, किसी अन्य (शिक्षक) को तो कुछ तरीका आता ही नही है पढ़ाने का। शायद इसीलिए प्रतिदिन, प्रति बेला, प्रति कक्षा में घूम-घूमकर देखते हैं कि क्या पढ़ाया जा रहा है, कैसे पढ़ाया जा रहा है, साथ में कोई न कोई कमी निकालकर 100% टोकना ही टोकना है, और तो और वहीं बच्चों के सामने| यदि अध्यापक किताब के पैराग्राफ के अर्थ को बैठकर डेमो देते हुए बता रहा है तो कह दिया, "यहां से वहां देख लो कोई कुर्सी पर बैठा है जो आप बैठ गए, आप टेबल के ऊपर बैठकर या उसपर टिक कर खड़े होकर पढ़ाइए।...