No one is MAD

पागल कोई नहीं है!

आज एक जीवंत उदाहरण देखने को मिला। इस विषय को पिछले 10 वर्षों से महसूस कर रहा हूँ और समझ नही आ रहा था कि शुरुआत कहाँ से करूँ। आज कर रहा हूँ। मैं ये नही कहूंगा कि पागल कौन है लेकिन मुझे महसूस होता है कि पागल कोई नहीं है। जिन्हें हम पागल या कम दिमाग का व्यक्ति कहकर संबोधित करते हैं वो वास्तव में बिल्कुल हम जैसे ही हैं। यहां आगे जो बात आप पढ़ेंगे वह आपको अजीब-सी लग सकती है या इस विचार से असहमत भी हो सकते हैं।
पिछले कई वर्षों से जब से स्वयं के होने का अहसास हुआ है लगभग तभी से अनेक ऐसे व्यक्तियों के दर्शन हुए जो हमारे मन मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ गए। ये व्यक्ति थे मंद बुद्धि के। लोग उन्हें पागल कहकर संबोधित करते हैं। 2,3 और 4 दिसंबर, 2018 की प्रातः लगातार तीन एक ऐसे ही व्यक्ति के दर्शन हुए प्रयागराज की धरती पर, बेली अस्पताल के पास की एक चाय की दुकान के पास जमीन में नाले की दीवाल का सहारा लिए मुंह में बीड़ी दबाए वह अपनी ही दुनिया में मस्त। मन में क्षणिक असंतोष उत्पन्न हुआ। फिर सोचने लगा ये तो हमसे अधिक खुश लगता है। उसको देखकर पूरा का पूरा दुःख मानो चला ही गया। इस व्यक्ति के बारे में चाय की दुकान पर बैठे व्यक्तियों से पूछा तो किसी ने कहा, "ये तो यहीं पड़ा रहता है", किसी ने कहा, "पिछले कई महीनों से उसे देख रहा हूं, ऐसे ही किसी-किसी से कुछ मांग कर खा लेता है", किसी ने कहा, "इसको बीड़ी की सनक सवार रहती है। बस बीड़ी दे दो तो ये खुश हो जाता है।" चाय की दुकान के लड़के से मैंने कहा, "क्या-क्या समय है, कैसी-कैसी जिंदगी है। सबके परिवार हैं, इसका कोई न कोई तो होगा ही, परिवार से, सेज-संबंधियों से, लेकिन फिर भी धूल खाने को मजबूर। भाई, ये रात भर क्या यहीं रहता है या कहीं और जाता है सोने?" उस लड़के ने कहा, "यहीं किनारे सो जाता है, कहाँ जाएगा?" मैंने कहा, "अब तो ठंड आ रही है, कैसे रहेगा ये?" उस लड़के का उत्तर सुनकर सुखद अनुभूति हुई। उसका उत्तर था, "कोई-न-कोई कंबल आदि दे ही जाता है। दो तीन कंबल मिल जाते हैं, उसी में लिपटा मिट्टी में पड़ा रहता है।" 
उन व्यक्तियों के प्रति बहुत सुखद अनुभूति हुई जो भी व्यक्ति इनकी सेवा करते हैं, ऐसे व्यक्तित्व के बारे में केवल सोचते ही नहीं, उनके लिए अपनी क्षमता योग्य, उनकी आवश्यकता के अनुसार करते भी हैं। 
लेकिन मन में एक बात अवश्य घर कर जाती है कि आखिर मंद बुद्धि या जिन्हें लोग पागल कहते हैं वे सड़कों की धूल-मिट्टी फांकने को क्यों मजबूर होते हैं? क्यों वे नालियों का पानी पीने को मजबूर रहते हैं? बड़े ही आक्रोश में कह रहा हूँ कि सर्वप्रथम इसके जिम्मेदार, उनके परिवार वाले हैं। यदि परिवार में कोई नहीं है तो उनके सगे संबंधी हैं और अगर वो भी नहीं हैं तो बाकी बचे हम लोग हैं जो इनके लिए यथायोग्य सेवा-सहयोग को हाथ नहीं बढ़ाते। वे जो मंद बुद्धि को घृणा दृष्टि से देखते हैं, वे तीव्र बुद्धि के लोग यह जान लें कि तीव्र बुद्धि वाला होने का अर्थ यह नहीं है कि हम अपने दायित्वों को भूल केवल अर्थ (धन) के लिए जीते हैं लेकिन इस आवश्यकता (धन की) के अतिरिक्त भी कुछ अन्य के लिए जियें तो आपको स्वयं से साक्षात्कार होगा। अब बताइए जिस व्यक्ति ने जन्म लिया, पले-बढ़े, जब उनके द्वारा स्वयं को संभालने की बारी आई तो पता चला कि उनका मस्तिष्क सामान्य नहीं है। तो लोग उन्हें पागल कहकर संबोधित करने लगे फिर घर वाले तंग आकर उनको इधर-उधर भटकने के लिए छोड़ देते हैं। ऐसा लगता है कि घर वालों के पास हृदय ही नहीं है। अब बताइए "पागल कौन" है। वह मंद बुद्धि या वे परिवार जन जिनके हृदय से आत्मीयता समाप्त हो चुकी है। यहां कुछ सत्य उदाहरण के आधार पर ये सब बातें कह रहा हूँ। मेरे पास पांच ऐसे साक्षात उदाहरण हैं जिनके बारे में, उनके परिवार के बारे में मैं जानता हूँ। उनमें से एक परिवार ऐसा भी है जिनका एक सदस्य मंद बुद्धि है। ऐसी स्थिति में भी उस सदस्य को साथ में रखता है। परिवार के उस मुखिया के लिए ईश्वर से सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करता हूँ। एक अन्य के बारे में यह जानकारी प्राप्त है कि उन मंद बुद्धि व्यक्ति के बेटे-बेटी सर्वगुण सम्पन्न हैं लेकिन फिर भी पिता जी के पूरे शरीर पर सिवाय हाफ चड्डी के कुछ नहीं होता और इस दुकान पर, उस दुकान पर कुछ-न-कुछ मांगते फिरते हैं। उन्हें देखकर उनके बेटों के प्रति मन में ईश्वर से प्रार्थना निकलती है कि हे ईश्वर उन मंदबुद्धि बच्चों को कुछ तो अक्ल मिल जाये और पिता जी को इस स्थिति से बाहर निकाल लें। एक और व्यक्ति जो वैसे तो हमेशा सूट-बूट में रहता है लेकिन इधर-उधर घूम-घूमकर पैसे मांगता है। लोग उसे पागल-पागल कहते रहते हैं। जानकारी के अनुसार घर के सभी सदस्य सम्पन्न है, बेटियों का विवाह भी कर दिया है इस व्यक्ति ने। मुझे लगता है कि उनके घर के अन्य सदस्य यदि उनका थोड़ा भी ध्यान रखें तो वह गांव से बाहर नही जाएगा और लोग उससे परेशान नहीं होंगे। ऐसे ही और भी हैं।
अन्य परिस्थितियां भी हो सकती हैं। क्षमा चाहता हूं लेकिन 10-12 वर्षों में जो अनुभव किया उसी आधार पर कहने का प्रयास कर रहा हूँ।
वैसे तो अनेकों लोगों को जिनके पास ईश्वर कृपा से सबकुछ है लेकिन ईश्वरीय दायित्व निभाने के लिए कुछ भी नहीं है। उनसे एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि सड़क पर दृश्यमान ऐसे व्यक्तित्व को कोई अपने घर में स्थान देने में असमर्थ है। यह संभव भी नहीं है लेकिन चलते-फिरते समाज में कभी ऐसे दृश्य देखने को मिले तो यथासमय (यदि समय हो तो, क्योंकि आजकल के जीवन में शत-प्रतिशत भाग-दौड़ का समावेश हो गया है) यथासंभव उनके लिए भोजन-पानी, कपड़ा या आवश्यकता के अनुसार सामग्री अवश्य उपलब्ध कराएं। यहां एक विशेष बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि ऐसी जगह जहां सबकुछ उपलब्ध हो वहां सेवा करने की बजाय जहां आपको स्वयं को दिखे की फलां जगह फलां वस्तु की आवश्यकता है, वहां अपनी सेवा दें तो स्वयं, परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए गौरवान्वित अनुभूति प्राप्त करेंगे।
मैंने तो प्रातः इस दृश्य के दर्शन पश्चात यह प्रण लिया कि "हे ईश्वर! मुझे इस योग्य बनाइये कि मैं आपके भेजे इस विशिष्ट व्यक्तित्वों के लिए कुछ कर सकूं। मुझे इन्हें देखकर बहुत संतोष प्राप्त होता है।" जब-जब ऐसे दृश्य दिखाई पड़ते हैं मैं अपना दुख की सभी स्मृतियां खो बैठता हूँ। 
वहां से हटने के बाद लिखने का मन बनाया और यह प्रयास आपके समक्ष है।

-आपका कम शब्दों का लेखक
प्रमोद केसरवानी

Comments

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