सोच बदलो तो देश भी बदलेगा
सोच बदलो तो देश भी बदलेगा
एक सुबह की वास्तविक घटना है, एक व्यक्ति सूट-बूट में हमारे दुकान पर खड़ा हुआ और चाचा जी से राम-राम किया। पास में मैं भी खड़ा था, तो मैंने भी अभिवादन किया। क्योंकि चाचा जी की आंख में कुछ समस्या है इसलिए वह उस व्यक्ति को ठीक से पहचान नहीं पाए। उस व्यक्ति के चले जाने के बाद चाचा जी बोले, "कौन थे ये?"
मैंने कहा, "अपने गांव के हीरा काका का लड़का है।"
उन्होंने गांव की भाषा में कहा, "हम जानी के आय, सूट-बूट मा आईगा?"
मैंने कहा, "हल्द्वानी में रहता है। कमा रहा है तो पहनेगा ही। पहले बेचारे गरीबी में जिये, तब पहनने को कम था, आज भगवान से दिया है तो पहन रहा है।"
चाचा जी बोले, "ठेला-ओला चलावत है, के देखत अहय का करत अहय।"
मैंने कहा, "कुछ भी करें, कोई चोरी वगैरह थोड़ी ही कर रहा है।"
उन्होंने कहा, "जेके जौन काम है, उहै करै का चाही, ठेला ठेलब उनके काम न वाय।"
मैंने कहा, "अब कोई काम छोटा नही है, जीविका चलाने के लिए, अगर टॉयलेट की सफाई का काम भी मिले तो क्या हर्ज है? यदि व्यक्ति उस को उसकी योग्यता के अनुसार को कार्य ठीक लगा उसने किया। अब वो ये सोचे कि हम ठेला नही चलाएंगे, हम तो बड़ा बिजनस या नौकरी करेंगे, तो। कैसे संभव है जबकि उसकी योग्यता ही नही है उसके अनुसार।
आगे जो चाचा जी ने कहा उसपर मुझे कुछ ज्यादा ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, "ये सफाई वाला काम दूसरे जाति के लोगों का है। हमारी जो जाति है उसके हिसाब से काम करेंगे।"
अब बताईये भला, क्या जाति के अनुसार काम किया जाता है? अब इसमें भी जाति का समावेश कर दिया।
मैंने कहा, भला जाति के अनुसार कोई काम कैसे हो सकता है? जिस कार्य में जो निपुण हुआ या उसकी रुचि के अनुसार या उसकी योग्यता अनुसार काम ठीक है तो बढ़ चले उसी काम को करने।
उन्होंने कहा, "हम तो कभी न करी ई काम।"
मैंने कहा, "आपका तो बीत चुका है लेकिन कम से कम सोच तो बदला ही जा सकता है। अब आप किसी के कमाने-खाने के बीच जाति वगैरह मत ले आइयेगा। पूरा देश बदलाव की ओर है और एक आप हैं कि जात-पात में उलझे हैं। सोच नही बदलेगी तो जमाने से बहुत पीछे धकेल दिए जाएंगे और बस केवल दूसरों को दोष ही देते रह जाएंगे। सोच बदल कर आगे बढिये, दुनिया बदलने लगेगी।"
सच है "सोच बदलिए, दुनिया बदल जाएगी।"
ऐसे ही एक दूसरी घटना जा जिक्र भी आवश्यक है। पास के ही एक गांव में निमंत्रण में जाने का अवसर मिला था सो मैं तैयार हुआ ही था कि किसी ने कहा, "कहाँ चल दिये?"
मैंने कहा, "फलां भाई के यहां तिलक है, वहीं जा रहा हूँ।"
उन महासय ने कहा, "वो तो जात के पासी हैं, छोटी जाति के हैं, उनके यहाँ खाना खाओगे क्या? मैं तो मिलकर चला आया, मैं तो छोटी जाति के लोगों के घर पानी भी नहीं पीता, खाना खाना तो दूर की बात है।"
मुझे उनकी बातों में हंसी आयी। हंसने के बाद पूछा, "क्या आपने उनसे हाथ मिलाया था?"
वे बोले, "हां, उसमें क्या है?"
मैने कहा, "जब उनसे हाथ मिला सकते हैं तो उसी हाथ से पानी क्यों नही ले सकते? क्या वो इंसान नहीं हैं?"
वे बोले, "बस हमारा मन नहीं मानता, उनके हाथ से पानी लेना या उनके घर खाना। हम ऊंची जाति के लोगों को शोभा नहीं देता।"
मैंने कहा, "बड़ी घटिया सोच रखते हैं आप। उनके यहां खाने से कौन सा सम्मान घट जाएगा? जबकि मुझे तो लगता है आपसी प्रेम बढ़ेगा, खुशियां बढ़ेंगी। बाकी तो मुझे खुद भी खुशी होती है उनके साथ खाने-पीने से।"
वे नाराज होते हुए बोले, "ठीक है जाइये मुझे क्या?
मैंने कहा, "बस एक बार गंभीरता से सोच लीजिएगा कि आप जो कह या कर रहे हैं क्या वो ठीक है? क्या उनके हाथों में कुछ ऐसा है जो हमें नुकसान पहुचा देगा? अब हर धर्म व जाति के लोग हर जागर आसीन हैं चाहे नौकरी हो या व्यवसाय। इंसान के प्रति इंसानियत का परिचय दीजिये, आपको भी प्रेम का अहसास होगा। फालतू की बातों में पड़कर समाज से अलग मत होइए अन्यथा समाज पूछेगा नही आपको क्योंकि समाज में अनेक परिवर्तन आ चुके हैं। उसके साथ चलिए। जात-पात छुआ-छूत आदि को दिमाग से पूरी तरह निकल दीजिये। मैं वापस आपसे मिलूंगा तो आप उत्तर दीजिएगा।"
उन्होंने कहा, "ठीक है सोचेंगे।"
न जाने कितने नागरिक होंगे जिनकी मानसिकता में जात-पात की भावना अभी भी उफान मार रही होगी लेकिन उन्हें समाज के साथ अपनी सोच में परिवर्तन लाना ही पड़ेगा अन्यथा हर जगह अवहेलना का सामना करना पड़ेगा।
लोग अपने में बदलाव लाने को तैयार नही हैं और कहते है पहले का जमाना ऐसा था-वैसा था, लोग जाति आधारित कार्य करते थे, उन्हें उनके जाति से पहचानते थे। क्या आज ऐसा संभव है? आज लोगों के कार्य से उनकी पहचान बनती है, उनके गुणों से उनकी पहचान बनती है, उनकी दिव्यता से उनकी पहचान बनती है, उनके सत्कर्म से उनकी पहचान बनती है, न कि उनकी जाति से। आज किसी भी जाति के लोग किसी भी पद पर आसीन हो सकते हैं, इसके लिए उन्हें स्वयं को उस पद के लायक बनाना पड़ता है।
गांव में अक्सर सुनने को मिलता है कि कोई व्यक्ति अहंकार में भर हुआ यह बोलता है, "फलां व्यक्ति तो मेरे सामने साइकिल से चलता है, मुझे क्या पता नहीं कि वो कौन है?" ये वाक्य अधिकतर सिर्फ दूसरों को नीचा दिखाने के लिए बोला जाता है न कि तारीफ में। जब चाहिए यही कि उस फलां की तारीफ हो, "उसने आज अपनी मेहनत और लगन से ये मुकाम हासिल किया है, उसका आदर करना चाहिए।"
आपके मन में एक छोटा-सा बदलाव आपके जीवन को बदल देगा। आप दूसरों को प्रेम देंगे और स्वयं के प्रति गौरवान्वित महसूस करेंगे।
तो...
सोच बदलो तो देश भी बदलेगा
सबके चेहरे खिलेंगे, परिवार संवरेगा।
जात-पात के आडंबर से निकल,
पूर्ण जीवन गौरवान्वित महसूस करेगा।
- आपका कम शब्दों का लेखक
(प्रमोद केसरवानी)

Sahi kaha aapne,...
ReplyDeleteआप दूसरों को प्रेम देंगे और स्वयं के प्रति गौरवान्वित महसूस करेंगे।
ReplyDeleteWaah