योगाभ्यास में बाधक - हरी, वरी, करी

योगाभ्यास में बाधक - हरी, वरी, करी


जल्द ही एक विशेष दिवस आने वाला है... 21 जून, 2015 याद होगा आप सभी को। यह दिन भारतीयों को विशेष हर्ष की अनुभूति कराता है... शायद आप सभी जान गए होंगे कि मैं किस विषय पर बात कर रहा हूं? जी, मैं बात कर रहा हूँ- अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की। साथ में एक निवेदन भी अवश्य करूँगा कि आप सभी 'योग' शब्द का उच्चारण करें न कि 'योगा' शब्द का। अन्य किसी से भी आप सुनें तो उन्हें भी 'योगा' शब्द प्रयोग करने के लिए मना करें। वर्ष 2015 को वर्ष के सबसे लंबे दिन यानी 21 जून को ''अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस'' घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को ''अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस'' को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है।
इस दिवस पर यानी 21 जून को भारत सहित पूरा विश्व योगासन व प्राणायाम के साथ योगाभ्यास करेगा। वैसे तो योगाभ्यास प्रतिदिन का एक हिस्सा होना चाहिए परंतु अधिकतर लोग व्यस्तताओं या किसी अन्य कारणों के चलते इसको अपने जीवन का नियमित हिस्सा नही बना पाते। केवल एक दिन के अभ्यास से जीवन में कोई परिवर्तन संभव नहीं है। योगाभ्यास को प्रतिदिन का हिस्सा बनाकर स्वस्थ तन व स्वस्थ मन के साथ जीवन आनंदित बना सकते हैं। योग में आहार-विहार का भी एक विशेष स्थान है क्योंकि स्वस्थ तन-मन व विचार को प्राप्त करने हेतु योगाभ्यास के साथ उचित पोषण एवं सुंदर व्यवहार का विशिष्ट योगदान है।
वर्तमान परिदृश्य में अगर वातावरण के प्रभाव को शरीर पर व्यापक रूप से देखें तो प्रदूषित वातावरण ही हमारे हिस्से में आएगा। शुद्ध वातावरण तो लगभग है ही नहीं या जहां है वहां नियमित पहुंच पाना संभव नही है। इसी कारण एक सुव्यवस्थित दिनचर्या को अनवरत बनाये रखना संभव नही हो पाता है। इसका सीधा प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़ता है। लोग, न चाहते हुए और न जानते हुए मानसिक रोगी हो जाते हैं। ऐसी स्थित में, जीवन में थोड़ा-सा सकारात्मक परिवर्तन से रोग-शोक से मुक्ति पाई जा सकती है। योगाभ्यास में सहायक आहार और व्यवहार को प्रभावित करने वाले तीन महत्वपूर्ण शब्द, जिसका 'त्याग' या 'त्याज्य' आपके लिए, अतिउत्तम और अतिउपयोगी साबित होंगे। ये तीन शब्द हैं- 'हरी', 'वरी' और 'करी'। मन को प्रभावित करने वाले ये तीन शब्द भयंकर नकारात्मक तत्व हैं। ये नकारात्मक तत्व जीवन को नष्ट कर जाते हैं और हम कुछ कर नहीं पाते। योगाभ्यास में बाधक इन्हीं तीनों शब्दों को विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं-
'हरी'- अंग्रेजी शब्द ‘हरी’ यानि हिंदी में जल्दबाजी। यदि बहुत छोटे बच्चों को छोड़ दें तो लगभग सभी लोग इस शब्द से अच्छी तरह परिचित हैं। सभी को इस शब्द की विशेषता अवश्य समझनी चाहिए। जीवन में सभी कार्य सही समय पर श्रेष्ठ तरीके से सम्पन्न हो तो बहुत बढ़िया होगा लेकिन यह संभव नही हो पाता क्योंकि 'हरी' जैसे नकारात्मक शब्द को ओढ़कर सभी कार्य किये जाते हैं जिसमें कभी-कभार तो सफलता मिल जाती है लेकिन अक्सर असफलता ही मिलती है जिससे आपका समय, पैसा और भी न जाने क्या-क्या व्यर्थ हो चुका होता है जिसकी भरपाई संभव नही है और यदि आपने इसे अपने नियमित दिनचर्या में शामिल कर लिया तो लगभग सभी कार्य बाधाओं के साथ सम्पन्न होता है। इस नकारात्मक तत्व को स्वयं में समाहित करने से बल, बुद्धि और सम्मान, तीनों में अवनति प्रारंभ हो जाती है। कई आध्यात्मिक व्यक्तित्व इसका श्रेय भय को देते हैं। यानी भय से किये कार्य में जल्दबाजी अवश्य समाहित होती है इसी कारण निर्णय लेने में असमंजस की स्थिति बन जाती है और कार्य गलत दिशा की ओर मुड़ जाता है। बिना सोचे-विचारे, चिंतन किये, लिया गया निर्णय अधिकांशतः गलत परिणाम ही देते हैं। यदि जीवन को सफलता की ओर प्रशस्त करना है तो इस शब्द को त्यागना पड़ेगा। सकारात्मक विचार, धैर्य, सहनशीलता, गंभीर चिंतन, आदि शब्दों को ओढ़ना पड़ेगा तभी क्रमगत कार्य और नियमित दिनचर्या का पालन हो पायेगा जिससे 'मानव-जीवन की सफलता' के मूल मंत्र को सार्थक किया जा सकेगा। सुबह उठने से लेकर सोने तक प्रत्येक कार्य को सकारात्मकता से ओतप्रोत कराना, मन को मजबूती प्रदान करता है।
'वरी'- अंग्रेजी शब्द ‘वरी’ और हिंदी में 'चिंता'- यह मानव और मानवता दोनों का सबसे बड़ा शत्रु है। आप में से अनेक लोगों ने एक कहावत अवश्य सुनी होगी- ''चिंता और चिता एक समान'' अर्थात् चिता तो मृत शरीर को जलाती है और चिंता जीते-जी मानव को जला देती है, भस्म कर देती है, समाप्त कर देती है। यह मन की कमजोरी का दूसरा महत्वपूर्ण कारण है। हर पल दुखों से भरा नही हो सकता, कोई तो समय आएगा ही कि सुख की अनुभूति होगी। फिर भी मन चिंता में ही डूबा रहता है। सब सत्य जानते हुए भी चिंता करके खुद को भस्म करते रहते हैं। चिंता के बजाय चिंतन पर अपना ध्यान केंद्रित करना उचित है क्योंकि इससे हमें कोई-न-कोई मार्ग अवश्य दिखाई पड़ता है, दुख से बाहर आने का। दुख है तो है, लेकिन उस दुख को भी इस आशा के साथ, इस विश्वास के साथ व्यतीत करें कि अगला पल सुख देने वाला आएगा। यहां धैर्य अवश्य रखना चाहिए। मन में सदा-सर्वदा, सुखी, निरोगी, निश्चिंत, निर्भय आदि सकारात्मक विचार रखना सर्वथा उचित है। इस प्रकार मन में शुद्धता का प्रसार प्रारंभ हो जाएगा। 'वरी' जैसे शब्द इतनी दूर चले जायेंगे कि आपको दुख होते हुए भी सुखद अनुभूति होगी और आपका मन-मस्तिष्क आपके जीवन को सरलतम मार्ग पर ले जाएंगे। यदि आप चाहें तो प्रातः उठते के तुरंत बाद और रात्रि में शयन से ठीक पहले मन में दोहराएं- ‘‘मैं पूर्ण हूँ, मैं निर्भय, निश्चिंत और निष्पाप हूँ। मैं पूर्ण वीर्यवान हूँ, पूर्ण भाग्यवान हूँ। मेरी शक्ति अनंत है। तो चिंतामुक्त स्वतंत्र मन से प्रतिपल-प्रतिक्षण व्यतीत होगा।
'करी'- यह है तीसरा नकारात्मक तत्व। 'करी' अर्थात् तीखे मसाले जिसका आहार में सम्मिलित होने से ही न जाने कितनों के मुंह में पानी आ जाता है लेकिन यह वास्तव में हमारे शरीर का, स्वास्थ्य का दुश्मन है। यह हमारे शरीर को शारीरिक रूप से भीतर से खोखला करते चले जाते हैं और हमें एहसास नहीं होता। जब इसका प्रतिकूल प्रभाव शरीर पर दिखना प्रारंभ हो जाता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। हमारे खान-पान का हमारे मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। आहार के विषय में एक कहावत हम सभी ने सुनी है- ''जैसा अन्न वैसा मन'' यानि हम जैसा भोजन करेंगे उसी अनुरूप हमारा मन भी कार्य करेगा। यदि हम साधारण व सात्विक भोजन करेंगे तो हमारा मन भी शांत व सात्विक होगा लेकिन यदि हम खूब सारे तले-भुने और तीक्ष्ण मसालेयुक्त भोजन करेंगे, अनियमित समय पर भोजन करेंगे तो हमारे व्यवहार में चिड़चिड़ापन, गुस्सा, क्रोध जैसे विकार आ जाते हैं। शरीर में झुर्रियां आ जाती हैं। चहरे अलसाए-मुरझाए हुए से दिखाई पड़ते हैं। शरीर पर स्वयं का नियंत्रण नही रहता। मन-मस्तिष्क का शरीर से संबंध टूटने-सा लगता है। तीक्ष्ण मसालेयुक्त भोजन उत्तेजक होते हैं। हर समय चटपटी, मसालेदार खान-पान से पेट निर्बल होकर पाचन क्रिया को खराब कर देती है जिससे भूख कभी खुलकर नहीं आती या अत्यधिक आने लगेगी। भोजन पर कोई संयम नहीं कर पाएंगे। लाल मिर्च का प्रयोग ब्रह्मचर्य में 'काल' के समान है, इसलिए इसका सेवन एकदम बंद कर देना चाहिए। मसालेदार भोजन से वीर्य उछल पड़ता है जिससे आयु में कमी होती है। जिन्हें अपना पुरुषत्व बनाये रखना है, वह मिठाई, खटाई व मिर्च-मसाले आदि का संयमित रूप से प्रयोग करें या तो संभव हो तो पूर्णतः त्याग कर दें। तन-मन व विचार में सामंजस्य बना रहेगा। मन शांत, शुद्ध व सात्विक होगा और सकारात्मक कार्य में निपुणतापूर्वक सपफलता प्राप्त करेंगे।
निष्कर्ष रूप में यह समझाना व बताना चाहता हूँ कि आध्यात्मिक, शारीरिक व मानसिक तौर पर  विलक्षण स्वास्थ्य प्राप्त करना हमारा स्वयंसिद्ध अधिकार होना चाहिए। वर्तमान समय का वातावरण प्रदूषण और नकारात्मक विचारों से भरा पड़ा है। इस प्रकार के वातावरण को पराजित करके ही हम स्वयं को परिवार, समाज व राष्ट्र के लिए एक स्तंभ के रूप में स्थापित कर पाएंगे। भारतीय दर्शन अमूल्य धरोहर है और इसका स्वाध्याय करना हम सभी का दायित्व है। 'हरी', 'वरी' और 'करी' जैसे महारोगों का त्याग योगत्व प्राप्त करने में सरल मार्ग स्वरूप हैं। इस त्याग के साथ अपनी दिनचर्या में योगाभ्यास को समाहित करें, यह उत्तम तन व मन को प्राप्त करने का ठोस साधन है।
'हरी'-'हरी' मत कर जीवन में,
हर पल, हर दिन हो 'वरी'-'वरी'।
तन-मन दूषित हो जाएगा,
गर ललचाये मन देख 'करी'।
करोगे योग तो रहोगे निरोग,
जीवन की डगर हो खुशियां भरी।।

-आपका कम शब्दों का लेखक
(प्रमोद केसरवानी)

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