सन्तोषम् परम् सुखम्
"सन्तोषम् परम् सुखम्" "संतोष"- एक ऐसा शब्द जो लगभग हर व्यक्ति इसका उपयोग करता है और लगभग प्रत्येक व्यक्ति इसकी तलाश करता है। यह बहुत महत्वपूर्ण शब्द है वर्तमान समय का। कभी सलाह के रूप में तो कभी आत्मानुभूति के रूप में इस शब्द का सामना करना पड़ता है फिर भी इसकी खोज जारी रहती है। "आपको तो संतोष ही नही है", "संतोष रखो! जो होगा सब ठीक होगा", आह! आज जाकर मुझे संतोष मिला है", "सिर्फ संतोष मिल जाये, अब और कोई इच्छा नहीं" आदि वाक्य अब रोज किसी न किसी से सुनने को मिलते हैं। एक पुराना वाक्य "सन्तोषम् परम् सुखम्" अक्सर सुनने को मिलता है, महसूस करने को मिलता है, आत्मसात करने को मिलता है। अच्छा भी लगता है। क्या संतोष प्राप्ति ही परमसुख है? बिल्कुल है क्योंकि जब हम किसी उद्देश्य विशेष को प्राप्त कर लेते हैं तो उस क्षण जो आनंद प्राप्त होता है वह किसी परमसुख से कम नहीं होता है। लेकिन आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि इस शब्द का प्रयोग केवल सकारात्मक दृष्टि से ही नहीं बल्कि नकारात्मक दृष्टि से भी हो रहा है। आप में से अनेक लोग ऐसे...
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